निकम्मा
Muzaffarpur Bihar India, April 8, 2025, 7 p.m.
सुना था ग़ालिब से कि इश्क़ ने निकम्मा कर दिया,
पर पता चला आज कि हम भी आदमी थे कुछ काम के।
इश्क़ ने जो छीना, वो भी इक दौलत ही थी शायद,
लुटा के बैठे हैं अब पनघट पे, वो भी बिन नाव के।
हमने चाहा डूबना भी हो सलीके से,
पर दरिया ने पी लिया सारा पानी, रह गए हम बिन बहाव के।
सुना था ग़ालिब से कि इश्क़ ने निकम्मा कर दिया,
पर पता चला आज कि हम भी आदमी थे कुछ काम के।
~ निराश
