"लकीरें"
Pune, India, Dec. 21, 2024, 3:45 p.m.ढूंढ़ता रहा उसे जो कभी था ही नहीं !
आज उस ‘आस’ को छूटते देख रहा हूँ !!
करता रहा गलतियां बार बार, हर बार !
आज उस ‘काश’ को डूबते देख रहा हूँ !!
दुआ मांगता रहा मस्जिदों में, मंदिरों में
आज उस ‘विश्वास’ को उठते देख रहा हूँ !!
अर्पण करता रहा फूल उनके सर माथे पे !
आज उन फूलों को बिखरते देख रहा हूँ !!
देखता रहा सदियों से सुनहरे सपनें !
आज उन सपनों को टूटते देख रहा हूँ !!
खींचता रहा लकीरें, ठहरे पानी में !
आज उन लकीरों को मिटते देख रहा हूँ !!